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Updated: 18 अक्टूबर, 2019 12:26 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित अभिनेता ओम पुरी अपने जीवन के साथ-साथ अपने किरदारों में भी कई एक्सपेरिमेंट्स करते थे. ओम पुरी कभी अपने किरदारों के चलते तो कभी अपने विवादों के चलते हमेशा चर्चा में रहे. 15 अक्टूबर 1950 में जन्मे ओम पुरी की मृत्यु 66 साल की उम्र में 6 जनवरी 2017 को हो गई थी. अगर किरदारों की बात की जाए तो हम उस इंसान के बारे में बता रहे हैं जिसने अपने करियर में अलग-अलग किरदारों को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. चलिए देखते हैं ओम पुरी के वो किरदार जो समाज पर एक कटाक्ष करते हैं...

1. मिर्च मसाला-

अबु मियां का किरदार इस फिल्म में ना सिर्फ ओम पुरी की आदाकारी को दर्शाता है बल्कि ये भी दिखाता है कि औरतों की इज्जत और उनकी रक्षा हर हाल में करनी चाहिए. एक अड़ियल सुबेदार और गांव के मुखिया के सामने खड़े होकर भी ओम अबू मियां (ओम पुरी) ने ना अपनी जान की परवाह की और ना ही अपनी नौकरी की. उनके लिए सिर्फ उनके कारखाने में मौजूद सोनबाई (स्मिता पाटिल) को बचाना ही अहम था. ये किरदार ओम पुरी के सबसे अलग और अहम किरदारों में से एक था.

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 ओम पुरी का ये किरदार सीख देता है कि किस तरह हमेशा औरतों की इज्जत करनी चाहिए चाहें आपकी जान ही दांव पर क्यों ना हो

2. तमस-

इस फिल्म में ओम पुरी ने नत्थू का किरदार निभाया था. कसाई का काम करने वाले नत्थू को ठेकेदार (पंकज कपूर) एक सुअर की कटाई का काम देता है. मना करने पर नत्थू को रिश्वत दी जाती है. बाद में वही सुअर एक मस्जिद के दरवाजे पर मिलता है. इस पूरी फिल्म में अपनी बीमार मां की मौत से लेकर अपनी पत्नी की रक्षा तक नत्थू के रूप में ओम पुरी ने एक ऐसे किरदार को पर्दे पर जीवित किया है जिसने हिंदू, मुस्लिम और सिख दंगों के बीच एक नीची जाती के फंसे हुए इंसान की दुविधा बताई है.

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 धर्म के नाम पर होने वाला कत्लेआम  एक आम इंसान के लिए कैसा होता है ये इस फिल्म में बताया गया है

3. डर्टी पॉलिटिक्स-

"एमएलए को मिनिस्टर बनना है, मिनिस्टर को चीफ मिनिस्टर बनना है और चीफ मिनिस्टर को प्राइम मिनिस्टर बनना है" इस डायलॉग को फिल्म डर्टी पॉलिटिक्स में बोलने वाले ओम पुरी ने इस फिल्म में राजनीति के उस चेहरे को दिखाया है जिसकी बात सभी दबी जुबान में करते हैं, लेकिन बोलते नहीं. एक तरफ जहां ओम पुरी ने मिर्च मसाला में औरतों की इज्जत करने वाले अबू मियां का रोल अदा किया था वहीं, डर्टी पॉलिटिक्स में ओम पुरी ने औरतों की इज्जत ना करने वाले एक ऐसे नेता की भूमिका निभाई है जिसकी असलियत से सभी वाकिफ हैं.

4. मकबूल-

नसीरुद्दीन शाह के साथ जोड़ी बनाकर घूसखोर पुलिसवाले की भूमिका निभाने में ओम पुरी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. मकबूल फिल्म में पुलिसवाले पंडित बने ओम पुरी कभी सीरियस तो कभी कॉमेडी बातें करते दिखे थे. फिल्म में जितनी अहम भूमिका इरफान खान और पंकज कपूर की थी उतनी ही ओम पुरी और नसीर साहब की भी जिनके बिना फिल्म अधूरी रहती.

5. अर्ध सत्य-

अपने प्रभावी पिता और आशावादी प्रेमिका के बीच अपने अस्तित्व को तलाशते पुलिसवाले अनंत वेलेकर का किरदार इस फिल्म में ओम पुरी ने निभाया था. इस फिल्म की कहानी से हर वो युवा जुड़ सकता है जो खुद को तलाशने में नाकाम रहा है. एक युवा पुलिसवाला जो हर काम सोच समझकर करता है, लेकिन कई बार गुस्से में कुछ ऐसे कदम उठा लेता है जिनपर उसे पछताना पड़े.

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 एक युवा जिसका प्रभावशाली पिता उससे अपेक्षाएं रखता है किस दुविधा में फंस सकता है ये इस फिल्म में बताया गया है

6. माचिस-

एक साधारण सा केमेस्ट्री प्रोफेसर सनाथन कैसे राष्ट्रीय लड़ाई का हिस्सा बन जाता है ये देखने लायक है. सिस्टम के खिलाफ अपना गुस्सा दिखाते हुए ओम पुरी ने इस किरदार में जान डाल दी थी. पर्दे पर जब ओम पुरी ने पूछा था कि 50 साल की आजादी से आम आदमी को क्या मिला तब वाकई एक कॉमन मैन का दर्द झलका था. इस फिल्म का सबसे ताकतवर सीन था जब ओम पुरी बोलते हैं कि 'आधे को तो 1947 खा गई और आधे को 1984'. सिस्टम के खिलाफ गुस्सा दिखाता ओम पुरी का किरदार...

7. नासूर-

क्या होता है जब कोई डॉक्टर समाजसेवा करता है. उसे क्या मिलता है? पिता के नक्शेकदम पर चलने वाला एक समाजसेवी डॉक्टर जो कर्ज में डूबा हुआ है. अपने पार्टनर से धोखा खाता है. क्या होता है जब उसे सच का पता चलता है. इस फिल्म में ओम पुरी का किरदार मजबूर होने के साथ-साथ मजबूत भी था. अपने उसूल किसी हालत में ताक पर ना रखने वाला ओम पुरी का किरदार काबिले तारीफ था.

ये भी पढ़ें- ओम पुरी और अदनान सामी का फर्क समझिए

8. जाने भी दो यारों-

पुल गिरता है और सरकार से लेकर आम आदमी तक सभी एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं. ये थी तो कॉमिक फिल्म लेकिन हर किरदार ने एक समाज पर एक व्यंग्य किया था. वैसे तो इस फिल्म में सभी अहम किरदार थे मगर सपोर्टिंग रोल होने के बाद भी ओम पुरी ने अपना किरदार बखूबी निभाया है. ये फिल्म समाज पर एक व्यंग्य थी जिसमें जुर्म का पता लगाने और मुजरिमों का पर्दाफाश करने वाले नौजवानों को ही आरोपी बताया जाता है. फिल्म में ओम पुरी एक ऐसे बिल्डर बने हैं जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना जानता है. चाहें इसके लिए उसे कुछ भी क्यों ना करना पड़े.

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 द्रौपदी तेरी अकेले की नहीं, हम सब शेयरहोल्डर हैं जैसा डायलॉग बोलने वाले ओम पुरी ने इस किरदार में जान डाल दी थी. 

9. नरसिम्हा-

"यहां की सरकार भी हम हैं और कानून भी हम...." भीड़ के सामने खड़े ओम पुरी के सबसे अहम किरदारों में से एक था नरसिम्हा के बापजी का किरदार. इस फिल्म में ओम पुरी एक गुंडे, नेता, पिता और सरकार सभी के किरदार को एक ही इंसान की शक्ल में निभा रहे थे.

10. आक्रोश-

ओम पुरी ने इस फिल्म में जो किरदार निभाया है उसकी तारीफ शब्दों में नहीं की जा सकती. एक मजदूर जिसकी पत्नी के साथ जबरदस्ती होती है. पूरी फिल्म में मुश्किल से ही ओम पुरी ने कोई डायलॉग बोला है, लेकिन सदमे में आए उस पति की भूमिका ओम पुरी ने बखूबी निभाई है.

ओम पुरी अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन अपने किरदारों के साथ हमेशा जीवित रहेंगे.

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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