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Updated: 10 अक्टूबर, 2019 02:48 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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प्यार कभी इकतरफा होता है न होगा...दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाइश है ये ...

गुलज़ार साहब की इन दो लाइनों के बीच हर इश्क की कहानी पूरी होती है. फिर उस इश्क में मिलन की दास्तां हो या बिछड़ जाने की टीस. दरअसल फिर इश्क महज़ इश्क नहीं रहता, वो अफसाना बन जाता है.. वो अफसाना जो सदियों तलक सुना और सुनाया जाता है. ऐसे ही इश्क की दो रूहें हैं रेखा और गुरुदत्त.

गुरुदत्त साहब तो अब रहे नहीं लेकिन उनके पीछे इश्क की एक कहानी रह गई, जिसके सारे फूल कागज़ के थे और उनके इश्क की पाकीज़गी का आलम ये था कि उसके सामने 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है' जैसी शिकायत रह जाती थी. गुरुदत्त के बेहद करीबी रहे अबरार अल्वी साहब ने गुरुदत्त की मौत के बाद बताया कि उस रोज़ गुरुदत्त बहुत बेचैन थे. वो शाम थी 10 अक्टूबर 1964 की. गुरुदत्त की बहन ललिता लाजमी को संगीत की एक शाम में अपने भाई का इंतज़ार था, पर लड़खड़ाती आवाज़ में गुरुदत्त ने उन्हें फोन पर बताया कि 'मैं कभी और मिलूंगा लल्ली, भीड़ में मुझे अच्छा नहीं लगता'. इसके बाद गुरुदत्त अपने पीछे तमाम अफसाने छोड़ गए. जिनमें खास था गुरुदत्त के वहीदा रहमान से इश्क का अफ़साना.

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                                                                गुरुदत्त और वहीदा रहमान

वहीदा को फिल्मों में गुरुदत्त ही लाए थे और गुरुदत्त की फिल्मों के साथ-साथ दोनों के इश्क का सफर भी चलता रहा लेकिन गुरुदत्त शादी-शुदा थे, गीता राय उनकी पत्नी थी. बात फैली तो गुरुदत्त और वहीदा के इश्क का ताना-बाना भी बिखर गया और जिंदगी में बस शराब रह गई. जिस रोज गुरुदत्त ने इस दुनिया को अलविदा कहा उस दिन उन्होंने अपने नौकर को पैग देने के लिए आवाज लगाई थी और पूरी बोतल लेकर अपना कमरा अंदर से बंद कर लिया, वो कमरा जहां से गुरुदत्त, वक्त के हसीं सितम पर इल्जाम लगाने के लिए फिर कभी बाहर नहीं निकले. आज गुरुदत्त नहीं हैं लेकिन उनके इश्क की कहानी हर बदलते मौसम के साथ, हर 10 अक्टूबर को, उनके अधूरे इश्क की दास्तां लेकर सामने आ जाती है.

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                                                                फिल्म 'प्यासा'

10 अक्टूबर गुरुदत्त की ज़िंदगी की आखिरी तारीख थी लेकिन इसी तारीख को एक और दास्तां ने जन्म लिया था जिसकी खुशबू से अब तलक इश्क के सिलसिले चल रहे हैं. रेखा, 10 अक्टूबर 1954 को इस दुनिया में आईं. 1976 में फिल्म दो अंजाने के बहाने अमिताभ बच्चन से मिलीं तो फिर ऐसी मिलीं कि फिर वो मुलाकात अंजानी नहीं रही. कहा जाता है कि अमिताभ की सोहबत में रेखा कुछ इस कदर निखर कर कर आईं कि उनके हुस्न के साथ अदाकारी भी एक मिसाल बनती चली गई. और दोनों के फिल्मी अफसाने सच जैसे लगने लगे। फिल्म कुली के दौरान अमिताभ बच्चन जब बुरी तरह ज़ख्मी हुए तो रेखा ने उनके लिए दुआएं मांगी, लेकिन वही कहानी एक बार फिर सामने आई, अमिताभ भी शादीशुदा थे और जया बच्चन उनकी पत्नी थीं.

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                                                             अमिताभ बच्चन और रेखा

अपने आखिरी इंटरव्यू में रोमांस के डायरेक्टर कहे जाने वाले यश चोपड़ा ने रेखा और अमिताभ को लेकर फिल्म सिलसिला का एक वाकया बताया था, कि वो फिल्म बनाना उनके लिए आसान नहीं था क्योंकि फिल्म की कहानी भी असली जैसी थी. लेकिन वक्त के साथ वो सिलसिला भी थम गया. अमिताभ भी हैं और रेखा भी और साथ उनका अफसाना भी. रेखा और अमिताभ अगर कहीं मिलते हैं तो वो खबर होती है, और अगर नहीं मिलते तो भी खबर बनती है. वक्त ने दोनों को उम्र की ऐसी दहलीज़ पर खड़ा कर दिया है जहां इश्क के जगहंसाई बन जाने का डर रहता है. लेकिन बीता दौर जानता है कि..इश्क तो इश्क है। रेखा अब भी किसी के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरती हैं जैसे कि उन्हें किसी का इंतज़ार अब भी हो..

'अधूरा कर के अफसाना उसने कहा, पूरी हो हर दास्तान ज़रूरी तो नहीं..'

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                                                        अब भी मांग भरती हैं रेखा

 

 

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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