New

होम -> सिनेमा

 |  1-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 21 मार्च, 2017 12:04 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

आजादी देश को ही नहीं लोगों को भी मिलनी चाहिए. बोलने की आजादी, अपने ढंग से रहने की आजादी, चीजों को अपने हिसाब से देखने की आजादी. मंटो बेबाक लिखते थे. Vulgarity को उनकी कहानियों का केन्द्र बताया गया. लेकिन क्या लिटरेचर कभी वल्गर हो सकता है?

मंटो का एक ही सवाल है- जो चीज जैसी है उसे वैसी ही पेश क्यों ना किया जाए? आखिर टाट को रेशम क्यों कहा जाए? हकीकत से इंकार करने से अगर समाज को बेहतर बनाया जा सकता तो राम-राज्य खत्म ही नहीं होता.

manto_650_032017075023.jpgजमाने के साथ अदब भी बदले

समय आ गया है कि जमाने की करवटों के साथ अदब भी करवट बदले. नंदिता दास निर्देशित इस वीडियो में बोलने की आजादी पर मंटो की बेबाकी के जरिए करारा प्रहार किया गया है.

ये भी पढ़ें-

नोटबंदी के दौर में एक कवि की साइकिल यात्रा

देश चलता नहीं मचलता है, मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ उछलता है..

भीतर की बात कह गए पियूष मिश्रा, पढ़िए और सोचिए

#सआदत हसन मंटो, #आजादी, #लेखक, Saadat Hasan Manto, Freedom Of Speech, Manto

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय