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Updated: 26 सितम्बर, 2017 05:34 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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इस साल फिल्म न्यूटन को 2018 में होने वाले ऑस्कर पुरस्कारों के लिए "बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म अवार्ड" केटेगरी में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है. तेलुगू निर्माता सीवी रेड्डी की अगुवाई में फिल्म फेडरेशन की सिलेक्शन कमेटी ने न्यूटन फिल्म का चयन किया. फिल्म फेडरेशन के महासचिव सुप्रण सेन ने बताया कि इस साल की 26 फिल्मों में से इस फिल्म को सर्वसम्मति से चुना गया है. सबसे हैरान कर देने वाला संयोग ये है कि जिस दिन यानि 22 सितम्बर को ये फिल्म भारत में रिलीज़ हुई थी उसी दिन ये घोषणा भी की गयी कि इस फिल्म को ऑस्कर अवार्ड समारोह में भारत की अधिकारिक प्रविष्टि के बतौर नामित किया गया है.

ऑस्कर अवार्ड, फिल्म, न्यूटनन्यूटन पॉर ऑस्करभारतीय फिल्मो का चयन कैसे होता है?

हर साल की तरह फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया को यह अधिकार है कि वो ऑस्कर के लिए "बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म अवार्ड" केटेगरी के लिए एक फिल्म का चुनाव करे. इस साल जुलाई में फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने सर्कुलर जारी कर के बताया था कि ऑस्कर के लिए फिल्म जमा करने की आखिरी तारीख 10 सितम्बर 2017 है. इसके लिए एक सिलेक्शन कमेटी का चुनाव फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया करती है जो ये तय करती है कि कौन सी फिल्म ऑस्कर भेजने लायक है. इस कमेटी में फिल्मों से जुड़े लोग जैसे फिल्म निर्देशक, निर्माता, लेखक आदि शामिल होते हैं. इस कमेटी द्वारा जो फिल्म का चुनाव किया जाता है वो ऑस्कर के लिए भेजा जाता है.

फिल्म फेडरेशन के द्वारा जारी सर्कुलर में साफ तौर पर लिखा था कि इस बार सिलेक्शन कमेटी 16 सितम्बर से इन फिल्मो को देखना चालू करेगी क्योंकि 1 अक्टूबर से पहले उन्हें अकादमी को सौपना पड़ेगा. फिल्म फेडरेशन के अनुसार जो चयन की शर्ते राखी गयी थी, उसके अनुसार उन्हीं फिल्मो का चयन होना था जो भारत में 1 अक्टूबर 2016 से 30 सितम्बर 2017 के बीच व्यावसायिक तौर पर रिलीज़ की जाएगी. इसके साथ-साथ इस फिल्म को कम से कम सात दिनों तक लगातार चलना चाहिए ये नियम भी जुड़ा हुआ है.

भारतीय फिल्म ऑस्कर में "बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म अवार्ड" केटेगरी में नाकाम क्यों?

ऑस्कर में भारत की सबसे प्रबल दावेदारी 2002 में हुई थी, जब लगान को बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म अवार्ड केटेगरी के लिए चुना गया था. उस साल ये ऑस्कर जीतते-जीतते रह गया था. आखिर क्या कारण है कि आज़ादी के इतने वर्षो बाद भी कोई भारतीय फिल्म इस केटेगरी में अवार्ड नहीं जीत पाया है. क्या हमारी चयन प्रक्रिया में खोट है? क्या किसी खास फिल्म का ही चयन किया जाता है? क्या चयन में धांधली बरती जाती है? इन प्रश्नो का उत्तर शायद किसी के पास नहीं है. लगान से पहले 1957 में मदर इंडिया और सलाम बॉम्बे का चयन बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म अवार्ड केटेगरी के लिए हुआ था लेकिन आखिरी मौके में ये अवार्ड जितने में विफल हो गई थी.

1956 में जब से इस केटेगरी में अवार्ड की शुरुआत की गयी है भारत का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत ही ख़राब रहा है. भारतीय एंट्री हमेशा कुछ न कुछ कंट्रोवर्सी से घिरी रही है और ज्यादातर फिल्मों के चुनाव को लेकर. मिसाल के तौर पर 1996 में इंडियन और 1998 में जीन्स का ऑस्कर के लिए चुनाव. किस आधार पर इनका चुनाव हुआ था ये रहस्य ही है. 2007 में एकलव्य–दी रॉयल गार्ड को लेकर बवाल मचा था, जब फिल्म फेडरेशन पर पक्षपात का आरोप लगा था. कुछ साल पहले जब बर्फी फिल्म का चुनाव ऑस्कर के लिए किया गया था तब सोशल मीडिया में बहुत हो हल्ला मचा था कि इस फिल्म की कई दृश्य दुसरे विदेशी फिल्मो की नक़ल है. इस बार भी न्यूटन फिल्म पर आरोप लगे है कि ये एक ईरानी फिल्म सीक्रेट बैलट की कॉपी है. हालांकि इस फिल्म के डायरेक्टर अमित मासुरकर ने इन आरोपों से इंकार किया है और कहा कि ईरानी फिल्म से न्यूटन फिल्म की कोई समानता नहीं है.

बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज केटेगरी में किन देशों की धूम?

1956 के बाद से इस केटेगरी में ज्यादा अवार्ड यूरोपियन देशों की फिल्मो को ही मिला है. सबसे ज्यादा अवार्ड इतालियन फिल्में जितने में कामयाब हो पायी है. करीब 10 अवार्ड इटली के फिल्मों को इस केटेगरी में अभी तक मिल चूकी है. इटली के अलावा फ्रांस, पुर्तगाल, स्वीडन, रूस, जर्मनी, चीन, ईरान आदि देशों की फिल्मों को भी इस अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. गौर करने वाला बात है कि 10 बिलियन डॉलर वाला भारतीय फिल्म इंडस्ट्री अभी तक एक भी अवार्ड बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज केटेगरी में जीत नहीं पाया है. हैरानी तो तब होती है जब भारत में फिल्माया गया दूसरे देश का फिल्म ऑस्कर जीत जाता है.

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लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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